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मेडिकल कॉलेजों में छात्र तनाव और कार्यभार प्रबंधन के उपाय और चुनौतियां

सरकारी और निजी मेडिकल कॉलेजों में नए शैक्षणिक सत्र की कक्षाएं 22 सितंबर से शुरू होने जा रही हैं। इस बार छात्रों के लिए एक नई शर्त जोड़ी गई है। सभी अभ्यर्थियों को कक्षा में शामिल होने से पहले पूर्ण स्वास्थ्य परीक्षण कराना होगा। यह कदम इसलिए उठाया गया है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मेडिकल की कठिन पढ़ाई और प्रशिक्षण के लिए छात्र शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ हैं।


अनिवार्य स्वास्थ्य परीक्षण में सामान्य फिटनेस जांच और मेडिकल हिस्ट्री की समीक्षा शामिल होगी। कॉलेज प्रशासन जिला अस्पतालों और मान्यता प्राप्त लैबों के सहयोग से यह परीक्षण कराएंगे। रिपोर्ट प्रवेश सत्यापन के समय जमा करनी होगी। स्वास्थ्य प्रमाण पत्र के बिना छात्रों को कक्षाओं में शामिल होने की अनुमति नहीं दी जाएगी। वरिष्ठ चिकित्सकों ने इस निर्णय का स्वागत किया है। उनका मानना है कि भविष्य के डॉक्टरों को अपनी सेहत का ध्यान रखना बेहद जरूरी है।


छात्रों और अभिभावकों की प्रतिक्रिया मिली जुली रही। कुछ लोग छात्र हित में इस कदम को सही मानते हैं, वहीं कुछ को प्रवेश प्रक्रिया में देरी की चिंता है। दूरदराज से आने वाले छात्रों के लिए बार बार यात्रा कर स्वास्थ्य परीक्षण कराना चुनौतीपूर्ण हो सकता है। इस परेशानी को कम करने के लिए कई कॉलेज परिसरों में ही स्वास्थ्य शिविर लगाने की तैयारी कर रहे हैं ताकि नए छात्र बिना अतिरिक्त खर्च और समय के यह प्रक्रिया पूरी कर सकें।


चिकित्सा विशेषज्ञों का मानना है कि इस कदम से युवाओं में स्वास्थ्य समस्याओं की शुरुआती पहचान भी हो सकेगी। मेडिकल की पढ़ाई के दौरान तनाव, नींद की कमी और अनियमित खान पान आम समस्या है। नियमित स्वास्थ्य जांच छात्रों को अपनी सेहत के प्रति जागरूक करेगी। कुछ विशेषज्ञों ने सुझाव दिया कि मानसिक स्वास्थ्य जांच को भी इस प्रक्रिया में शामिल किया जाना चाहिए।


कक्षाएं 22 सितंबर से शुरू होने वाली हैं और कॉलेज प्रशासन प्रवेश और स्वास्थ्य परीक्षण की औपचारिकताएं समय पर पूरी करने में जुटा है। अधिकारियों का मानना है कि प्रक्रिया के व्यवस्थित होने के बाद यह आने वाले वर्षों में प्रवेश प्रणाली का स्थायी हिस्सा बन जाएगी। यह कदम इस समझ को दर्शाता है कि मेडिकल छात्रों की सेहत उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी उनकी शिक्षा।