All Trending Travel Music Sports Fashion Wildlife Nature Health Food Technology Lifestyle People Business Automobile Medical Entertainment History Politics Bollywood World ANI BBC Others

गांधीकी की सरमुख्त्यारशाही और सरदार वल्लभभाई पटेल की दरियादिली

सरदार वल्लभ भाई पटेल भारत के लौह पुरुष थे। उनको "आयरन मन ऑफ़ इंडिया" कहा जाता है। क्योकि  उनके इरादे मजबूत थे। एक मजबूत ईमारत को खड़ी करने के लिए जो काम लोखंड करता है। वही काम सरदार वल्लभ भाई पटेल ने आज़ादी के बाद, हिंदुस्तान को बनाने के लिए किया। आज़ादी के बाद,सरदार वल्लभ भाई पटेल ने हिंदुस्तान को एक मजबूत राष्ट्र की पहचान दी। दुनिया में सबसे बड़ी लोकशाही बनाने के लिए और ५६२ रजवाड़े को बिना खून की एक भी बूंद गिराए एक राष्ट्र में मिलाना अपने आप में एक मिशाल है।                                                                                                                                                                                                     सरदार वल्लभभाई पटेल का पारिवारिक  परिचय 

नाम                                  वल्लभभाई झवेरभाई पटेल

अभ्यास                             बेरिस्टर (मिडिल टेम्पल इन लंदन ) ३६ साल की आयु में.

जन्म स्थल                          गुजरात राज्य के, खेड़ा जिले के, नडियाद गांव में. 

जन्म तारीख                       ३१ अक्टूबर १८७५ (राष्ट्रीय एकता दिवस )

पिता का नाम                     झवेरभाई पटेल

माताका नाम                      लाडबा झवेरभाई पटेल

चार भाइयो के नाम             सोमाभाई पटेल, नरसीभाई पटेल,विठ्लभाई पटेलऔर काशीभाई पटेल

एक बहन का नाम              डाहीबेन

पत्नी का नाम                      झवेरबा पटेल

पुत्र का नाम                        डाह्याभाई पटेल 

पुत्री का नाम                       मणिबेन पटेल 

राजकीय  पक्ष                      इंडियन नेशनल कांग्रेस 

पुरस्कार                               भारत रत्न 

                                                   

३६ साल की उम्र में लंदन से बेरिस्टर की डिग्री    


                                  Sardar Vallabhbhai Patel post shows, jpg image of Barrister Vallabhbhai Patel, who return from London seen in western clothes.

सरदार वल्लभभाई पटेल की शादी १६ साल की छोटी उम्र में की हो गई थी। इसलिए पढाई में देरी से याने २२ साल की उम्र में १० वी पास की। घर की परिस्थिति अच्छी नहीं थी। इसलिए उन्हों ने बेरिस्टर बनने की इच्छा होने के बावजूद पढाई छोड़ दी। उनकी पत्नी की कैंसर की बीमारी के कारण, शादी के १६ साल मे ही पत्नी का साथ छूट गया। जो उनके जीवन का सबसे बड़ा झटका था। 


फिर भी सरदार वल्ल्भभाई पटेल के इरादे मजबूत होने के कारण, उन्होंने  दोस्तों से पुस्तक लेकर पढाई फिर से शुरू की। इस तरह ३६ साल की उम्र मे, लंदन की मिडिल टेम्पल ऑफ़ लंदन का बेरिस्टर का ३६ महीने का कोर्स सिर्फ ३० महीने में पूरा करके बेरिस्टर बने। इस उम्र में और घर की इस परिस्थिति में, बेरिस्टर की डिग्री हासिल करना ही उनके लोखंडी इरादे की पहचान करवाता है। 


राजनीती में प्रवेश 


लंदन से लौटने के बाद, उन्होंने अहमदाबाद में एक सफल क्रिमिनल वकील का दर्ज़ा हासिल किया। इस समय उनकी जीवन शैली अंग्रेजो की तरह ही हो गयी थी। वह शूट, टाई और जुते पहनते थे। उनको राजनीती में कोई रस नहीं था। मगर दोस्तोंके कहने पर, अहमदाबाद से १९१७ में  नगर पालिका का चुनाव में लडे और जीते भी। इस तरह न चाहते हुए भी उनका राजनीती में प्रवेश हुआ।


गांधीजी से प्रभावित 


वैसे तो सरदार वल्लभभाई पटेल गांधीजी के विचारो से जरा भी प्रभावित नहीं थे। गांधीजी तो पूरी तरह समाजसेवा और  देश की आज़ादी की लड़ाई में रत थे। गांधीजी ने जब किसानो के लिए "निल क्रांति" करके बिहार के गरीब किसानो को न्याय दिलवाया। तब सरदार वल्लभभाई पटेल का ध्यान गांधीजी के कार्य की और गया। जिसमे ब्रिटिश गवर्नमेंट द्वारा बिहार के किसानो से जबरजस्ती निल का उत्पादन करवाना था। निल की मांग नहीं रहने से किसान अपनी निल बेच भी नहीं पा रहा था।  ऊपर से लगान भी देना पड़ता था। अगर ब्रिटिश सर्कार के निल के एग्रीमेंट से बहार निकलना हो तो भी बड़ी रकम चुकानी पड़ती थी। किसान चारोओर से शोषीत हो रहा था। गांधीजी के इंडिगो रिवोल्ट याने निल क्रांति से किसानो को न्याय दिलवाया और लगान  की  २५ % अवैध ली गई रकम भी वापस । इस दिलायी। इस कार्य से सरदार वल्लभभाई पटेल प्रभावित हुए। 


वल्लभभाई पटेल का पहला खेड़ा आंदोलन 


गुजरात के खेड़ा जिले में भयंकर सुखा पड़ा। किसानो की सारी फसल बर्बाद हो गयी। बारिस न होने से, किसानो ने की हुयी बुनाई की महेनत भी बर्बाद हो गयी। इस तरह पुरे साल की महेनत और कमाई दोनों बर्बाद हो गयी। किसानो ने सरकार से कर में राहत देने के लिए कहा। मगर सरकार अपना कर छोड़ने के लिए राजी नहीं थी। किसान काफी परेशान थे। 


तब वल्लभभाई पटेल ने किसानो को न्याय दिलवाने का इरादा किया। उनका जन्म खेड़ा में ही हुआ था। इसलिए यहां कि परिस्थिति से वह पूरी तरह वाकिफ थे। पहले तो वल्लभभाई पटेल ने अलग अलग जूथ में बटे हुए किसानो को एकजुट किया। किसानो को एक करके सरकार के सामने अहिंसक आंदोलन किया। यह आंदोलन काफी दिन तक चला। लेकिन वल्लभभाई पटेल ने अपने नेतृत्व में किसानो को झुकने नहीं दिया। आखिरकार सरकार को वल्लभभाई पटेल के, इस पहले अहिंसक जन आंदोलन के सामने जुकना पड़ा। खेड़ा के किसानो को न्याय मिला।  


बारडोली सत्याग्रह और सरदार की पदवी 


ब्रिटिश सरकार हर ३० साल बाद, लेंड रेवेन्यू बढ़ाने ने के लिए जाँच करती थी। इस तरह वह जमीन का कर बढाती थी। इस तरह गुजरात के बारडोली की भी जमीन  का कर बढाने के लिए जांच होनी थी। मगर वहा के  डिप्टी कलेक्टर ने बारडोली  के किसानो  मिलकर जाँच नहीं की। मगर ब्रिटिश दस्तावेज के हिसाब से ३०% लेंड रेवेन्यू बढाने का निर्णय ले लिया। इस फैसले से किसानो को काफी बडा झटका लगा। किसानो ने विरोध चालू कर दिया। इस आंदोलन का नेतृत्व वल्लभभाई पटेल ने लिया।


वल्लभभाई पटेल ने देखा की, जान आंदोलन में पहले लोग उत्साह से जुड़ते है। मगर सरकार की सख्ती और अत्याचार से कमजोर पद जाती है। आंदोलन से अलग होकर चुपचाप कर भर देती है। ऐसी परिस्थिति न आये, इसलिए वल्लभभाई ने किसानो को उनके धर्मगुरु के सामने शपथ दिलवायी की, कोई भी किसान हिंसा का सहारा नहीं लेगा और आंदोलन को छोड़कर नहीं जाएगा। एक कमिटी भी बनायीं, जो हर किसान पर नजर रखेगी ताकि कोई भी किसान आंदोलन से अलग होकर इसे कमजोर न करे। 


सरकार ने आंदोलन को दबाने के लिए, किसानो पर अत्याचार किये। मारपीट की। उनके घरो में जाकर उनके पशु को उठाकर ले जाते थे। उनकी जमीने जप्त की जाने लगी थी। । किसानो को जेल में डाला गया। साम, दाम, दंड और भेद सभी तरीके से किसानो को परेशान करके जन आंदोलन को कुचलने की कोशिश की। सरकार ने वल्लभभाई पटेल को गिरफ्तार करने की योजना बनायीं।


इसलिए गांधीजी बारडोली पहोच गए।  ताकि जन आंदोलन नेता के बगैर खत्म न हो जाये। आखिरकार थक हारकर सरकार ने नयी कमिटि से जाँच करके लेंड रेवेन्यू  ३० % से घटाकर ६% कर दिया गया। इस आंदोलन से जुडी महिलाओ ने वल्लभभाई पटेल को सरदार की उपाधि दी। आंदोलन सफल रहा। जेल में डाले गए सभी किसानो को मुक्त करवाया गया। उनकी जमींन और जानवर वापस दिलवाये गए। 


 सरदार से फ्रीडम फाइटर 


अब सरदार वल्लभभाई पटेल आज़ादी के संघर्ष से पूरी तरह जुड़ गए। जलियावाला बाग के नरसंहार के बाद, गाँधी के असहयोग आंदोलन में साथ देने के लिए उन्हों ने अपने सारे पश्चिमी वस्त्र उतारकर खादी को अपना लिया। इस तरह अपनेआप को आज़ादी के लिए पूरी तरह तैयार कर लिया। वह १९२० में अहमदाबाद की कांग्रेस कमिटी के प्रमुख बने। उसके बाद १९२२, १९२४ और १९२७ तक इस पद के लिए चुने गए। फिर आज़ादी मिलने तक इस के लिए कार्य करते रहे। इस कार्य के लिए देश आज़ाद होने तक, कही बार जेल भी गए।         


गांधीकी की सरमुख्त्यारशाही और सरदारकी दरियादिली 


दूसरा विश्वयुद्ध खत्म होते ही और १९४६ में भारत को आज़ादी मिलना तय हो गया था। इसलिए इंटेरिम  सरकार बनाने के लिए, नया कांग्रेस प्रमुख का चयन करना था। जो आज़ाद भारत का पहला प्रधानमंत्री बननेवाला था। इसका नॉमिनेशन १५ स्टेट /रीजनल कांग्रेस कमिटी करनेवाली थी। 


१५ कमिटी में से १२ कमिटी  ने सरदार  वल्लभभाई पटेल को चुना। ३ कमिटी ने किसीको नहीं चुना। इस तरह सरदार वल्लभभाई पटेल निर्विवाद कांग्रेस प्रेजिडेंट याने आज़ाद भारत के पहले प्रधान मंत्री के रूप में चुने गए। जब की जवाहरलाल नेहरुको किसीने नॉमिनेट नहीं किया। 


इस तरह  गांधीजी, जो की जवाहरलाल नेहरू को प्रथम प्रधानमंत्री बनाना चाहते थे। मगर उनके लिए धर्म संकट हो गया। गांधीजी ने जवाहरलाल  नेहरू को समजाने की कोशिश की। मगर जवाहरलाल नेहरू ने किसी के नीचे काम करने से मना कर दिया। ऐसा भी कहा जाता है की, जवाहरलाल नेहरू ने कांग्रेस को तोड़ने की धमकी भी दी। अगर कांग्रेस टूटता जाती तो आज़ादी खतरे में पड जाती या विलंब में पड जाती। 


इसलिए गांधीजी ने सरदार वल्लभभाई पटेल को नामांकन वापस लेने को कहा। सरदार वल्लभभाई पटेल ने कुछ भी समय गवाए बिना अपना नामांकन वापस लिया। इस तरह गांधीजी की सरमुख्त्यारशाही को अपनी दरियादिली से ढक दिया। ऐसे थे अपने सरदार वल्लभभाई पटेल। 


इस तरह दुनिया की सबसे बड़ी लोकशाही की शुरुआत ही गांधीजी के सरमुखत्यारशाही निर्णय से हुयी। 


भारत के प्रथम उप प्रधानमंत्री और ग्रह मंत्री


सरदार वल्लभ भाई पटेल, भारत के प्रथम उप प्रधान मंत्री और गृह मंत्री थे। अंग्रेजो ने भारत को १९४७ में छोड़ा। तब भारत अनेक छोटे  छोटे रजवाड़ो में बटा हुआ था। करीब ५६२ अलग अलग रजवाड़े थे। सबका अलग राजा था। इन सभी राजा को  अपना राज्य समर्पित करके एक हिन्दुस्तान बनाने के लिए समजाना काफी कठिन था।  यह काम के लिए मजबूत इरादेवाला और दीर्ध दृष्टि वाला इंसान ही कर सकता था। जिस आदमी को साम ,दाम , दंड और भेद से काम निकलवाना आता हो, वही सफलता पूर्वक यह काम कर सकता था। यह काम सरदार वल्लभ पटेल ने एक भी बूंद खून की गिराए बिना करके दिखाया। ऐसे कठिन कार्य ही सरदार वल्लभ भाई पटेल को सही मायने में लौह पुरुष की पहचान देते है। 


जूनागढ़ और हैदराबाद 


इस हिंदुस्तान को एक राष्ट्र बनाने के लिए, जूनागढ़ का नवाब और हैदराबाद का नवाब दोनों मुश्किल पैदा कर रहे थे। जूनागढ़ के नवाब को पाकिस्तान से जुड़ना था। जब की उसकी प्रजा को हिंदुस्तान से जुड़े रहना था। हैदराबाद को तो अपना स्वतंत्र राज्य बनाना था। जूनागढ़ का नवाब को तो प्रजा की इच्छा सामने जुक जाना पड़ा। वह हिंदुस्तान छोड़कर पाकिस्तान भाग गया। इस तरह जूनागढ़ हिंदुस्तान में शामिल हो गया।

 मगर हैदराबाद के नवाब निज़ाम ने सरदार वल्लभ भाई को हर तरफ से दबाव बनाने की कोशिश की। नवाब ने अपने दुत को भेजकर डराने की और धमकाने की भी कोशिश की। करीब एक साल याने करीब ४०० दिन तक अपना दाव खेलता रहा। तब सरदार वल्लभ भाई पटेल ने सेना भेजकर घेर लिया। इस तरह हैदराबाद के निज़ाम को भी जुका दिया। इस लश्करी कार्यवाही को "ऑपरेशन पोलो" के नाम से जाना जाता है।


कश्मीर और यु एन ओ (UNO)


आज के भारत की सबसे बड़ी समस्या कश्मीर की है। आज़ादी के इतने साल भी यह समस्या का कोई उपाय नहीं मिला है। हमारे अरबो खरबो रुपये का खर्च होने के बावजूद कश्मीर हमारा होते हुए भी हमारा नहीं है। 

कश्मीर की समस्या जूनागढ़ से उलट थी। वहा का राजा हरिसिंह कश्मीर ने भारत से मदद मांगी इसलिए हिन्दू था।  मगर उनकी प्रजा ज्यादातर मुस्लिम थी। मगर राजा हरी सिंह तय नहीं कर पाते थे की वह पाकिस्तान साथ रहे या भारत के साथ। इसलिए वह दोनों के प्रस्ताव टालते रहे। आखिरकार पाकिस्तान ने कश्मीर पर हमला कर दिया। राजा के पास इतना सैन्य नहीं था जो पाकिस्तान की सेना का मुकाबला कर सके। इसलिए राजा ने भारत से मदद मांगी। 


तब भारत ने राजा हरिसिंह से, भारत में कश्मीर को विलय करने के प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करवाए। इस तरह सरदार वल्लभभाई पटेल ने जम्मू कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग बनाया। अब पाकिस्तान की सेना जो श्रीनगर पहोच गयी थी। उसे वही पर रोक कर खदेड़ दिया। पाकिस्तान को बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा। भारतीय सेना पाकिस्तान की सरहद तक पहोच गयी थी। भारत चाहता तो लाहौर और कराची भी जित सकता था। उस समय पाकिस्तान को सबक सीखानेका था। 


उस वक्त पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भारत के गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल को बिना पूछे युद्ध विराम कर दिया। उसके लिए कोईभी कैबिनेट की मीटिंग नहीं बुलाई। इस तरह जो समस्या सैन्य कार्यवाही से सुलझ गयी थी और राजा हरी सिंह ने भी विलय के प्रस्ताव पर हस्ताक्षर कर दिए थे। इसलिए कश्मीर और जम्मू अब भारत का ही एक भाग हो गया था। इस सुलजी हुयी समस्या को नेहरू ने युद्ध विराम से उलझा दिया। इतना ही नहीं, इस समस्या को UNO की मध्यस्थी से सुलझाया जायेगा इस तरह की घोषणा दुनिया के सामने की। जो आज ७० साल के बाद भी UNO की मध्यस्ता से नहीं सुलजी है।


इस के कारण हमारे हजारो जवानो ने कुरबानी देनी पड़ी है। जो अभी भी जारी है। भारत के अरबो खरबो का आर्थिक नुकसान हो रहा है। इसलिए कही बार भारतीय जनता को लगता है की,अगर सरदार वल्लभभाई पटेल प्रथम प्रधानमंत्री होते तो, कश्मीर की समस्या पैदा ही नहीं होती। इस तरह आज़ादी के ७० साल के बाद भी, सरदार वल्लभभाई पटेल की जगह जो भारत की जनता के दिल में है, वह कोई नहीं ले पाया है। भारत की जनता के लिए वह हमेशा ही भारत के सरदार ही रहेंगे।   


                                                                      जय हिन्द