"महेश वसावा ने भाजपा से तोड़ा नाता: 'आदिवासी क्षेत्रों का विकास नहीं हुआ'"
महेश वसावा का भाजपा से अलग होना: आदिवासी हक और विकास पर जोर
"भाजपा में अब कोई सुनवाई नहीं होती, आदिवासी क्षेत्रों का विकास नहीं हो रहा है" – महेश वसावा
गुजरात के आदिवासी नेता महेश वसावा ने हाल ही में भाजपा से अपना नाता तोड़ते हुए गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने पार्टी के भीतर बढ़ते अहंकार और आदिवासी क्षेत्रों के विकास में विफलता का मुद्दा उठाया। महेश वसावा ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि भाजपा अब आदिवासी हितों के लिए काम नहीं कर रही है। पार्टी में कोई भी नेता अब आम आदमी या आदिवासी समाज की आवाज़ नहीं सुनता। उनका कहना था कि भाजपा अब केवल शहरी और व्यापारी वर्ग के हक में काम कर रही है, जबकि आदिवासी क्षेत्रों में विकास की स्थिति बद से बदतर हो चुकी है।
महेश वसावा के मुताबिक, पार्टी में अब केवल खुद के हितों की ही बात होती है। आदिवासी समुदाय के लिए जो योजनाएं बनाई जाती हैं, उनका लाभ सीधे समुदाय तक नहीं पहुंचता। वसावा ने आरोप लगाया कि आदिवासी क्षेत्र के लोग आज भी पानी, बिजली, सड़कों और चिकित्सा जैसी बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं, जबकि भाजपा केवल शहरी क्षेत्रों और उद्योगपतियों के साथ अपना संबंध मजबूत कर रही है।
महेश वसावा ने यह भी कहा कि भाजपा में किसी की सुनवाई नहीं होती। पार्टी के अंदर अहंकार की भावना हावी हो गई है और लोगों की समस्याओं की ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा। उन्होंने स्पष्ट किया कि अब वे अपनी लड़ाई खुद लेंगे और आदिवासी समाज के हक के लिए संघर्ष करेंगे। उनका कहना था कि उन्हें भाजपा के भीतर रहते हुए अपनी आवाज़ उठाने का कोई फायदा नहीं हुआ।
वसावा के इस फैसले के बाद गुजरात की राजनीति में हलचल मच गई है। उनके भाजपा छोड़ने के फैसले से यह संकेत मिलता है कि आदिवासी समाज के भीतर भाजपा के प्रति असंतोष बढ़ रहा है। वसावा अब अपने समुदाय के विकास और उनके अधिकारों के लिए एक अलग मंच पर काम करने का विचार कर रहे हैं।
राजनीतिक विश्लेषक यह मानते हैं कि महेश वसावा का यह कदम आगामी चुनावों में भाजपा के लिए एक बड़ा झटका हो सकता है। आदिवासी समुदाय के भीतर उनकी ख्याति और समर्थन को देखते हुए, वसावा के इस निर्णय से गुजरात में राजनीतिक समीकरण बदल सकते हैं।
महेश वसावा का भाजपा से बाहर निकलने का कदम उन आदिवासी मुद्दों को उठाने का एक स्पष्ट संकेत है, जो अब तक पार्टी और राज्य सरकार की प्राथमिकता में नहीं रहे। उनके अनुसार, अब समय आ गया है कि आदिवासी समाज को उनकी वास्तविक स्थिति और हक मिलें, और इसके लिए वे खुद सक्रिय रूप से प्रयास करेंगे.